धर्म के नाम से अधर्म !








धर्म के नाम से अधर्म ! 

आज का धर्म एक धोका है ,सभी अज्ञानी धर्म गुरु इंसान को गुमराह कर रहें है ,आप का धन से आइस कर रहें है ! वो आप को बाँध सकते है किंतु स्वतंत्र कर नहीं सकते ! बे लंबी चोला दाढ़ी बढ़ा कर अपने आप को धर्मी दिखाते है ,धर्म उनसे कोषो दूर है ! ब्रह्म क्या है ,ईस्वर क्या है ,ईस्वर हम को क्यूँ बनाया ,मोखस्या क्या है ,स्वर्गीय आनंद क्या है ,मृतु के पार क्या है यह ज्ञान उन पखण्डी गुरु कभी मालूम नहीं कर सकते !  

चाणकया कहा करते थे जिसमे ब्रह्म ज्ञान नही बो ब्राह्मण न्हीं इसका मतलब आज कोई भी ब्राह्मण नहीं !ब्रह्म को जानेने के लिए परमेश्वर् को जानना ज़रूरी है ! पूरण वेद तो है लेकिन सब में बीरोधाबास एबों भ्रांतियाँ है ! इसका मतलब यह सब एक जाती का बोपौती है ! ईस्वर किसी का पक्षयपात नहीं करता ,इसका मतलब वेद परमेस्वर की सृष्टि नहीं है ! पूरण मे लिखा है ब्रह्मा दुर्गा जी को देख कर बिरया स्कलित कर देता है ,सिव बिश्णु मे हमेशा युध होना ,विष्णु युध मे अनेक लोगों को मार कर उनका पत्निओ को रखेल बनाना ,ब्रह्मा अपना बेटी को बिभाओ करना ,इंद्र भेस बदल कर दूसरे का पत्नी का बलकताकर करना ,यह हमरे नैतिकता है तो हमारे अध्यात्मिकता कितना घृणित है आप खुद जबाब ढुंडिए ! अग्गर सिव परमेस्वर है तो अपना पुत्र गणेश को क्यूँ नहीं पहचान कर उसका सर काट दिया ,एक भगवान को पत्नी को कैसे रबान अपहरण कर लिया ,सीता रब्बन की बेटी है फिर भी रानी कर के रखना चाहता था इसका मतलब यह ईस्वर नहीं सरबज्ञयानी नहीं ! इनमे कोई भी नैतिकता नहीं ,सिर्फ़ संदेह के कारण सीता बानबस फिर जाना पड़ा ,यह नारी के उपर सोशण है ! 

परमेश्वर् कौन है ! 

जो जो इंसान प्रकृति में पाया जात है ब परमेस्वर मे नहीं पाया जाता ,वो ज्ञान से परे है !उसको किसी ने कभी भी नहीं देखा ,इंसान कल्पना के चलते बहुत सारा पूरण लिख सकता है परंतु देखा होता तो मार जाता तो पुराण लिख नहीं पाता ! इंसान प्रकृति में सिर्फ़ पाप,हिंसा,क्रोध,स्वार्थ,अभिलासा,जीबिका का घमंड,लालच,चोरी ,परस्त्र गमन,कुटिलता ,झूट और भी अनेक ! 

ईस्वर में सिर्फ़ निस्वार्थ प्रेम,दया,करुणा,ख्यमा ,निस्पाप,पबीत्रता ,बो सवसकतिमान,सवज्ञानी,सरबबयापि,सबसमोर्थी है  

आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। 
यही आदि में परमेश्वर के साथ था। 
 
सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ और जो कुछ उत्पन्न हुआ है, उस में से कोई भी वस्तु उसके बिना उत्पन्न हुई। 
 
उस में जीवन था; और वह जीवन मुनष्यों की ज्योति थी। 
और ज्योति अन्धकार में चमकती है; और अन्धकार ने उसे ग्रहण किया।
परमेश्वर जगत में था, और जगत उसके द्वारा उत्पन्न हुआ, और जगत ने उसे नहीं पहिचाना। 
 
वह अपने घर आया और उसके अपनों ने उसे ग्रहण नहीं किया। 
 
परन्तु जितनों ने उसे ग्रहण किया, उस ने उन्हें परमेश्वर के सन्तान होने का अधिकार दिया, अर्थात उन्हें जो उसके नाम पर विश्वास रखते हैं। 
 
वे तो लोहू से, शरीर की इच्छा से, मनुष्य की इच्छा से, परन्तु परमेश्वर से उत्पन्न हुए हैं। 
कि परमेश्वर ज्योति है: और उस में कुछ भी अन्धकार नहीं।
 
यदि हम कहें, कि उसके साथ हमारी सहभागिता है, और फिर अन्धकार में चलें, तो हम झूठे हैं: और सत्य पर नहीं चलते। 
 
पर यदि जैसा वह ज्योति में है, वैसे ही हम भी ज्योति में चलें, तो एक दूसरे से सहभागिता रखते हैं
 यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं: और हम में सत्य नहीं।
 
यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है।
 
यदि कहें कि हम ने पाप नहीं किया, तो उसे (परमेश्वर) झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है॥
जो कोई अपने भाई से प्रेम रखता है, वह ज्योति में रहता है, और ठोकर नहीं खा सकता। 
 
पर जो कोई अपने भाई से बैर रखता है, वह अन्धकार में है, और अन्धकार में चलता है; और नहीं जानता, कि कहां जाता है, क्योंकि अन्धकार ने उस की आंखे अन्धी कर दी हैं॥
तुम तो संसार से और संसार में की वस्तुओं से प्रेम रखो: यदि कोई संसार से प्रेम रखता है, तो उस में परमेश्वर का प्रेम नहीं है। 
16 
क्योंकि जो कुछ संसार में है, अर्थात शरीर की अभिलाषा, और आंखों की अभिलाषा और जीविका का घमण्ड, वह पिता की ओर से नहीं, परन्तु संसार ही की ओर से है। 
17 
और संसार और उस की अभिलाषाएं दोनों मिटते जाते हैं, पर जो परमेश्वर की इच्छा पर चलता है, वह सर्वदा बना रहेगा॥ 
जो कोई पाप करता है, वह शैतान की ओर से है, क्योंकि शैतान आरम्भ ही से पाप करता आया है: परमेश्वर इसलिये प्रगट हुआ, कि शैतान के कामों को नाश करे। 
जो कोई परमेश्वर से जन्मा है वह पाप नहीं करता; क्योंकि उसका बीज उस में बना रहता है: और वह पाप कर ही नहीं सकता, क्योंकि परमेश्वर से जन्मा है। 
लोगों की मूरतें सोने चान्दी ही की तो हैं, वे मनुष्यों के हाथ की बनाईं हुई हैं। 
उनका मुंह तो रहता है परन्तु वे बोल नहीं सकती; उनके आंखें तो रहती हैं परन्तु वे देख नहीं सकतीं। 
उनके कान तो रहते हैं, परन्तु वे सुन नहीं सकतीं; उनके नाक तो रहती हैं, परन्तु वे सूंघ नहीं सकतीं। 
उनके हाथ तो रहते हैं, परन्तु वे स्पर्श नहीं कर सकतीं; उनके पांव तो रहते हैं, परन्तु वे चल नहीं सकतीं; और अपने कण्ठ से कुछ भी शब्द नहीं निकाल सकतीं। 
जैसी वे हैं वैसे ही उनके बनाने वाले हैं; और उन पर भरोसा रखने वाले भी वैसे ही हो जाएंगे॥ 


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