मोक्ष्य !







मोक्ष्य
अँधा गुरु काना सिस्य यह परंपरा हमारे धर्म का धरोहर,गरब से डिंग मारने से हम धार्मिक नहीं बनजाते ! भस्टाचारी ब्याविचारी गुरुओं से प्रोबोचन सुननेसे आप धर्मी नहीं हो जाते 1 बहुत सारा पुराण जो कहानी के रीती से लिखा हुआ है वह मोखश्य नहीं दे सकता ,आपका गुरु आप को उधार नहीं दे सकता ! आप का कर्म कांड आप को मखस्य नहीं दे सकता ,तीरथ,गिरजा,मंदिर,मस्जिद और गुरुद्वारा आप को उद्धार कर नहीं सकता !
बिस्वास सही है लेकिन गलत बिश्वास पाप है ! इस्वर को जानना पाप नहीं परन्तु इस्वर को मन में आकर देना पाप है! आप का गुरु मर जाने से आप को मोक्ष्य नहीं मिलेंगे !आपका गुरु कम्बल ओढ़ के मीठा खाने से आप को मीठा नहीं लगेगा ! जब आप का गुरु परमेस्वर का दर्शन नहीं किया तो आप को क्या दिखायेगा ! आप अपने पुर्बोजों के जैसे ईश्वर के बिना मर जायेगे  !
गुरु कभी भी गोविंदा हो नहीं सकता हाँ गुरु घंटाल हो सकता ,आप का माँ बहनो के साथ बलात्कार करके आप से सम्मान प्! सकता ! जितने भी गुरु,श्रीश्रीश्री हैं सब के सब पाखंडी ही जो इस्वर आपके बिच एक दिवार है,रुकाबट है ! बड़े बड़े प्रवचन दर्शन की बात करके आप को मन्त्रमुघ्ध कर सकते है,आपसे सेवा करवा सकते है लेकिन आपको सेवा दे नहीं सकते ! आप कहेंगे आप गुरु चोर अथवा ब्याभिचारी नहीं, जब तक चोर पकड़ा नहीं जाता तो साधु है पकड़ा जाये तो सैतान  ! गुरु आप के नजर में क्या है यह कोई मैंने नहीं रखता है ! गुरु वह है जो लेता नहीं सिर्फ देता है , आप का मुसीबत में साथ रहता, बीमारी के समय आप का बिस्तर के पास खड़ा रहता है , मरहम पट्टी बांधता है, जेल कचेरी में साथ रहता,आपको महल का सुख देता,खुद झोपड़ी रहता है लेकिन आजका गुरु बिलकुल उल्टा ही करते है  ! आप पैदल चलते है किन्तु आपका पैसे से आप का गुरु प्लेन में उड़ता है ,आप सूखा रोटी खाते ,गुरु घी खाता है ! वह महल में आप झोपडी में ,यह कैसा धर्म है ?

हमारा परमेस्वर के प्रति धरना गलत है ! हम को इस्वर ने अच्छा सूरत दिया लेकिन हम घृणित अकार दे कर उसको पूजते है , इस्वर मनुष्य नहीं ,उसको दस हाथ जरूरत नहीं,वह पत्निओं के साथ रंगरेली मन! नहीं सकता , वह पेटू नहीं जो आपका चढ़वा खाये ,वो ब्रह्माण्ड बनाया है उस को हम क्या दे सकते ,उसको तीर धनुस लेकर घूमने के जरूरत नहीं पड़ता , सिर्फ यदि वह चाहें तो मुंह से इस ब्रह्माण्ड को नास कर सकता ! हम जो पूजते हैं वह एक कलाकार निर्माण है ,बच्चों की कहानी रूपी कल्पना है,हमसब सृष्टि करता को भूलकर सृष्टि को पूजा करते हैं , इसलिए हम परमेस्वर को देख नहीं पाते , मूर्ति क्या है ? आंख है देख नहीं सकता ,कान है सुन नहीं सकता ,हाथ है उठा नहीं सकता ,वह चल नहीं सकता ,उसको आप का सहारा चाहिए ,आप को कंधे से उठना पड़ेगा , उसका पत्नी सुरक्षित नहीं ,बन्दर की सेना की मदद से छुड़ाया जाता है! एक इस्वर तो अपना बेटा को नहीं पहचान पता उसका सर काट कर हाथी का सर लगा लेता ,यह साब बच्चों की कहानी तक ठीक लगता,इसमें कोई नैतिकता आध्यात्मिक दूर दूर तक नज़र नहीं आता ! कुछ धर्म में सिर्फ उल्टा सीधा कर्म कांड सब कुछ है ,दाढ़ी कैसे बढ़ाना,मुंह किस तरह करके नमाज पढ़ना और अन्य कर्म लिखा है ! यह धर्म नियम से बंधा है , नैतिकता कोशो दूर! मंत्र तंत्र से इस्वर को बस मे करना उसी से काम करवाना , इस क्रिया से परमेस्वर से गुलामी करवाना ,यह कैसा धर्म है ? हम धर्म के नाम से आसुरी सकती का पूजा करते है !


परमेस्वर निराकार है ,सर्वज्ञानी ,सर्वसक्तिमान , सर्वसमर्थी,सर्वब्यापी है ,सारा भलाई करता है ,वह किसी का पक्षयपात नहीं करता ,किन्तु वह सब को दर्शन देता है ! यदि सच्चा परमेस्वर को देखना चाहते हैं ,अद्भुत काम देख सकते हैं ,आप का गुरु से ज्यादा सामर्थी बन सकते है ! संपर्क करे ....919993906875










Comments

Popular Posts